Saturday, January 27, 2024
#वास्तविक संपदा
*सभी सुविधाओं युक्त भव्य मकान, शानदार वाहन, ऊंची आय, घर-बाहर के लिए सेवादार जैसी चलायमान वस्तुएं व्यक्ति की वास्तविक संपदा नहीं हो सकतीं। अनेक व्यक्ति इन्हें परम लक्ष्य मान कर आजीवन भ्रम और अंततः दुख में जीते हैं। बेचारे नहीं जानते, कालांतर में ये वस्तुएं क्षत- विक्षत हो सकती हैं। धर्म स्थलों के बाहर कटोरा थामे बैठे व्यक्तियों में उन नामी लोगों की संतानें भी हैं जिन्होंने बाह्य उपलब्धियों को सर्वस्व मान कर असल संपदा की अनदेखी की।स्वामी विवेकानंद ने कहा, समस्त परिसंपत्तियां, प्रशस्तियां, अलंकरण आदि छिन जाने पर भी व्यक्ति के पास जो बचा रहता है यानी उसका हौसला, वही मनुष्य की असल संपदा है। हाड़- मांस के आवरण में ढका उसका अमूर्त दैविक स्वरूप ही उसके जीवन को अर्थ देता है। इस संपदा में हमें सुमार्ग पर प्रशस्त रहने में सहभागी भी सम्मिलित हैं। ऐसे व्यक्ति में सतत् जीवंतता और आशा का संचार रहता है जिसके चलते वह चाहे तो समस्त खोया हुआ पुनः प्राप्त कर लेता है। लौकिक लक्ष्यों से अभिप्रेरित होंगे तो जीवन के अहम मूल्य उपेक्षित रह जाएंगे। लौकिक समृद्धि और शक्ति का अप्रिय पक्ष यह है कि इनके किरदारों में अहंकार आ जाता है। वह आत्मीय जनों सहित उन्हें भी कमतर आंकता है जिनकी सदाशयताएं सिद्ध रहीं। अपने पास क्या, कितना है, इसे जानने के स्थान पर लौकिक सुख-समृद्धि के उपासक का ध्यान इसी पर रहता है कि दूसरों के पास क्या-क्या है, जो स्वयं के पास नहीं है। यही चिंता उसे सताती है और उसके दुख का कारण बनती है।झड़ गए पत्तों को देख कर एकबारगी हरे-भरे वृक्ष का महत्व समझ आए या माता-पिता, परिजन के न रहने के पश्चात उनकी अतुल्य भूमिका का अहसास होना दूरदर्शिता नहीं है। जीवन की सार्थकता तब है जब हम स्वयं की सामर्थ्य, आज उपलब्ध साधनों-संबंधों को असल संपदा समझते हुए इनके प्रति कृतज्ञता का भाव संजोए रखें।*
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