Sunday, January 28, 2024
प्रकृति का नियम
हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी विकट परिस्थितियों से गुजरता है। ऐसी स्थिति में कुछ व्यक्ति बहुत जल्द ही निराश होने लगते हैं। कुछ व्यक्ति इसे ईश्वर की मर्जी मान लेते हैं। वैसे इंसान जो धैर्य खो देते हैं, उन्हें संकटों का सामना करने में मुश्किल होती है। फिर वे ईश्वर से सवाल करने लगते हैं कि यह जिंदगी ही क्यों दी और जिंदगी दी तो जिंदगी में इतने दुख क्यों दिए। दुख दिए तो दुख का निवारण क्यों नहीं हो रहा है?हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि अगर इस प्रकृति ने हमें जन्म दिया तो हम सभी इस प्रकृति की संतान हैं। इस प्रकृति को सबका ध्यान है। उसको सबका स्वभाव पता है। उसको सबकी क्षमता पता है। उसे यह भी पता है कि किसी को अस्तित्व में बनाए रखने के लिए उसके जीवन में कितना संघर्ष लाना आवश्यक है। अन्यथा व्यक्तिगत स्वभाव या प्रकृति के अनुसार अस्तित्व में बने रहने के लिए उसमें जरूरी क्षमता विकसित नहीं हो पाएगी। ठीक वैसे ही जैसे एक तितली इस दुनिया में आती है। अगर उस तितली के लिए चुनौतीपूर्ण क्षण किसी भी वजह से आसान हो जाए तो वह क्षण उसके लिए बेहतर है, लेकिन उसके बाद की चुनौती वह सह नहीं पाती है। चुनौतियां हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं।ओशो कहते हैं, कि 'अगर बहुत सुरक्षा मिले और कोई संघर्ष न हो तो रीढ़ टूट जाती है। रीढ़ - बनती ही संघर्ष में है। तुम जितना संघर्ष करते हो, उतनी ही तुम्हारी रीढ़ मजबूत होती है।' इसलिए हमें प्रकृति के नियम पर भरोसा रखना होगा। हमें ईश्वर पर भरोसा रखना होगा। वह बस यही चाहते हैं कि हमारा जन्म जिस उद्देश्य के लिए हुआ है हम उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएं। हमेशा यह याद रखिए कि जिसके जीवन में अभूतपूर्व संघर्ष आया है, वही अभूतपूर्व सफलता के योग्य बन सकता है। वह उन करोड़ों लोगों से अलग है, जिसने उनकी तुलना में अपेक्षाकृत आसान एवं सुगम जीवन जिया है।*
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