संयम का महत्व
|| संयम का महत्व ||
चूंकि यह संसार विविधताओं से परिपूर्ण है तो हमारे मन को विचलित होने के लिए अनगिनत दिशाएं उपलब्ध हो जाती हैं। हमारा मन अभिलाषाओं का भंडार है। एक इच्छा के तृप्त होते ही तुरंत उसमें एक नवीन इच्छा का अंकुर फूट पड़ता है। एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि सांसारिक विषय एवं मायामोह मन के लिए एक सशक्त आकर्षण केंद्र की भूमिका निभाते हैं। परिणामस्वरूप मन पर, विभिन्न दिशाओं से अनेक खिंचाव आरोपित होते हैं। ये मन में अशांति की अवस्था को जन्म देते हैं। यहीं पर संयम हमारे लिए उपयोगी सिद्ध होता है। यदि समय से संयम के सूत्र आत्मसात कर लिए जाएं तो भटकाव से बचा जा सकता है।संयम एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिसकी सहायता से मन में व्याप्त अशांति एवं विक्षोभ से छुटकारा पाया जा सकता है। हालांकि संयमरूपी ब्रह्मास्त्र की सिद्धि इतनी सरल भी नहीं है। संयम को अपने जीवन में उतारने के लिए मनुष्य को कठोर साधना से गुजरना पड़ता है। विषयों के प्रति आसक्त मन को समझाने का प्रयास करना पड़ता है कि संसार में जो कुछ भी है, वह नश्वर है एवं उसका अस्तित्व अधिक समय तक विद्यमान रहने वाला नहीं है। मन को यह सत्य भलीभांति समझाने में जो सफल हो जाता है, वह संयम की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। संयम की साधना में उन्मुख होने से पहले यह जान लेना भी अत्यंत आवश्यक है कि संयम एवं दमन में भारी अंतर है। जहां संयम बाह्य विषयों के प्रति आकर्षण को न्यूनतम करने का बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयास है, वहीं दमन अपनी इच्छाओं पर की गई एक तरह की जोर-जबरदस्ती है। दमन की प्रक्रिया मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। संयम मनुष्य को प्रकृति से जुड़ना सिखाता है।संयमी व्यक्ति आत्मिक रूप से निरंतर शुद्ध होता रहता है। उसके भीतर विषयजनित दुर्गुण समाप्त होने लगते हैं। संयम की सहायता से हम अपनी इंद्रियों को वश में करते हुए स्वयं को पवित्रता के उच्चतम स्तर तक ले जाने में सफल हो सकते हैं।
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